Wednesday, 22 July 2009

नन्हा "अनय", मेरी सौगात ....... (१४ मई - १९ जून, २००९)



'माँ बनने के दौरान मेरे हर पल के एहसास ने मुझे बताया कि माँ की पीड़ा से कहीं ज्यादा उस नन्हे की पीड़ा होती है जो निर्लोभ ही माँ के गर्भ में परेशानियों को झेलता है और माँ के हर एक एहसास को अपना एहसास बना आपको "माँ" बनने का एक सुनहरा अवसर देता है !'




"नहीं एहसान मेरा तुझ पर ,


जो गर्भ में है तू पल रहा ?


कोई तुझसे भी ये पूछे ,


किस हाल में है तू चल रहा ?


वो शान किसी माँ का,


अब मुझे है खल रहा

जिसकी जुबाँ कहती रही -' नौ महीने रखा गर्भ में जो धरती पे तू है खड़ा '


मुझे भार है बस तेरा ,


तू है दबा किस नर्क में

चमड़ी की इक झिल्ली में ,


सिकुड़ा तू कैसे पल रहा ?

मैं मुडू जिस ओर,


उस ओर तू मुड़ता है

शैदाई बना मेरा ,

मेरी मर्जी से है तू चल रहा


नहीं पाक मेरा दामन ,


मुझे लोभ " माँ " बनने का

मासूम तू निर्लोभ ही ,


पीड़ा में है संभल रहा


हंसतीं हूँ मैं हंसता है तू ,


बूँदें गिरी रोता है तू

न जाने किस घड़ी संभालता है तू ?


मेरी परेशानियां , जलता है तू

ओ नन्हें मेरे ! तू कम नहीं


मुझे सहने का , 

तुझ में दम कहीं


कहेगी "माँ" ना अब कभी -----'देकर तुझे जीवन , एहसानों की की है बरसात ' 

 मैनें जन्मा तुझे ये कम ही है ,

 तूने "माँ" बनने की दी है सौगात !"