शुक्रिया, शुक्रिया , बहुत बहुत शुक्रिया ......... " वेलेंटाइन डे " ! तुम नहीं होते, ये बुढापा तरसता , साल का एक दिन भी मुहब्बत ना बरसता और ज़वानी हमसे इक दिन सही यूँ नहीं जलता !
मुक़र्रर ना होता दिन, हम प्यासे हीं मर जाते
मुहब्बत को दिल करता , वजह क्या बताते ?
हर वक़्त हम पे हँसती ज़वानी को, कैसे ये सुनाते..........
"कहने को हूँ बूढ़ा , बस भूला आवाज़ हूँ
उमर की लाज आँखों में, नहीं भूला मैं साज हूँ
इश्क मेरा नहीं है कम , सुनो मैं माहताब हूँ
ठंडी मुहब्बत कितनी गहरी, तुम्हें दिखाने को आज हूँ !"


बहुत ही खूबसूरत रचना। इस शानदार अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत आभार! -: VISIT MY BLOG :- मेरे ब्लोग पर पढ़िये इस बार.......... जाने किस बात की सजा देती होँ............गजल।
ReplyDeleteVery true n Impressive, thanks for such a Fabulous creation!
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