"हक़ दे दो मगर हुकूब मत देना
जीते जी अपना कभी वज़ूद मत देना
औलाद हैं तो क्या खुश करने की बेखुदी में
कहीं ऐसा न हो अपना सुकून दे देना !"
Friday, 2 October 2009
'जलने वाले इंसानों का तमाम उम्र बदलता रुख'- शायद ही किसी की खुशी में दिल से शरीक हो पाये...........(२७ मार्च, २००१)
"कल तक जिस अक्स से नफ़रत-सी होती थी
शागीर्दी में उन्हीं के वो दिन-रात बैठें हैं
लगता है महफ़िल में कोई शामिल नया हुआ है
जलाने को जिसे दुश्मनों के साथ बैठें हैं !"
शागीर्दी में उन्हीं के वो दिन-रात बैठें हैं
लगता है महफ़िल में कोई शामिल नया हुआ है
जलाने को जिसे दुश्मनों के साथ बैठें हैं !"
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