Friday, 2 October 2009

बढ़ती उमर से मेरी इक गुज़ारिश, शायद सुकून दे जाए -'बुढापा अपने बच्चों को उनका हक़ ज़रूर दे पर सारा हक़ दे, ये ज़रूरी नहीं'.........( २१ फरवरी, २००२)

"हक़ दे दो मगर हुकूब मत देना

जीते जी अपना कभी वज़ूद मत देना

औलाद हैं तो क्या खुश करने की बेखुदी में

कहीं ऐसा न हो अपना सुकून दे देना !"

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