
"ना खून का रिश्ता है , ना दोस्ती भरे हालात
ना इंसा की सोच उसमे , ना खौफ ना सौगात
थोड़ी सिकन हमारी , बेचैन वो होती है
तोहफा जो हमारा , खुशियों में वो खोती है
कैसा ये नज़ारा है , कैसा ये इशारा ?
कैसें हैं ये ज़ज्बात , जो खुदा ने है संवारा ?
इकतरफा ये कैसा प्यार , जो कम नहीं होता ?
कुछ मिले ना मिले , उसे गम नहीं होता
दो रोटियों की महरबानी , हमने है उसपे की
उसने तो कतरा-कतरा , हमपे है लुटा दी !"

