Wednesday, 23 September 2009

मेरी प्यारी "खुशी" - इंसानों से ज्यादा जीवों में समर्पण-भाव..........(२१ जनवरी, २००६)




"ना खून का रिश्ता है , ना दोस्ती भरे हालात


ना इंसा की सोच उसमे , ना खौफ ना सौगात


थोड़ी सिकन हमारी , बेचैन वो होती है


तोहफा जो हमारा , खुशियों में वो खोती है


कैसा ये नज़ारा है , कैसा ये इशारा ?


कैसें हैं ये ज़ज्बात , जो खुदा ने है संवारा ?


इकतरफा ये कैसा प्यार , जो कम नहीं होता ?


कुछ मिले ना मिले , उसे गम नहीं होता


दो रोटियों की महरबानी , हमने है उसपे की


उसने तो कतरा-कतरा , हमपे है लुटा दी !"

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