काश ! ये होली बेजुबां कर जाती,
चेहरे के गहरे रंगों की लाली ना उतर पाती,
आवाज और पहचान का खलिस गहरा होता,
पर देखते इसे खोना खुशियों का सेहरा होता,
ना फिक्र अपनों की, ना अब हालात की हीं होती,
परायों से बस इक शाम मुहब्बत भरी ना होती,
दुश्मन भी परेशां, किसे दुश्मन अपना बताते ?
चाहकर भी अपनों-ग़ैरों में वो फ़र्क ना कर पाते,
अब जातिवादों की संचय ना दुनियां होती ,
इंसानों की इंसानियत परिचय हीं दुनियां होती,
देखते कैसे ज़मीं ज़न्नत में बदल जाती,
हर लब पे बिखरती हंसी और उम्र निकल जाती,
रंग-बिरंगी शाम से खुशियाँ सजाई जाती,
सच्ची होली ऐसी हीं सदियों मनाई जाती !
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आपकी पंक्तियाँ, आपके अच्छे भाव को स्पष्ट उजागर कर रहे हैं.
ReplyDeleteऔर इस लाइन ने विशेष प्रभावित किया...
इंसानों की इंसानियत परिचय हीं दुनियां होती,
देखते कैसे ज़मीं ज़न्नत में बदल जाती,
हर लब पे बिखरती हंसी और उम्र निकल जाती,
रंग-बिरंगी शाम से खुशियाँ सजाई जाती,
सच्ची होली ऐसी हीं सदियों मनाई जाती !
सच्चे दिल से लिखा आपने.
रुचि जी, आप जो भी पक्तियाँ लिखती हैँ वो मन मेँ उमंग पैदा कर जाती हैँ।होली प्रेम और रंगोँ का त्योहार हैँ जिसका मकसद सभी बुराईयोँ को मिटाकर, प्रेम से रहना हैँ। आपकी पक्तियोँ मेँ जो भाव छिपे होते हैँ वो बहुत कुछ सन्देश दे जाते हैँ।
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