'माँ बनने के दौरान मेरे हर पल के एहसास ने मुझे बताया कि माँ की पीड़ा से कहीं ज्यादा उस नन्हे की पीड़ा होती है जो निर्लोभ ही माँ के गर्भ में परेशानियों को झेलता है और माँ के हर एक एहसास को अपना एहसास बना आपको "माँ" बनने का एक सुनहरा अवसर देता है !'
"नहीं एहसान मेरा तुझ पर ,
जो गर्भ में है तू पल रहा ?
कोई तुझसे भी ये पूछे ,
किस हाल में है तू चल रहा ?
वो शान किसी माँ का,
अब मुझे है खल रहा
जिसकी जुबाँ कहती रही -' नौ महीने रखा गर्भ में जो धरती पे तू है खड़ा '
मुझे भार है बस तेरा ,
तू है दबा किस नर्क में
चमड़ी की इक झिल्ली में ,
सिकुड़ा तू कैसे पल रहा ?
मैं मुडू जिस ओर,
उस ओर तू मुड़ता है
शैदाई बना मेरा ,
मेरी मर्जी से है तू चल रहा
नहीं पाक मेरा दामन ,
मुझे लोभ " माँ " बनने का
मासूम तू निर्लोभ ही ,
पीड़ा में है संभल रहा
हंसतीं हूँ मैं हंसता है तू ,
बूँदें गिरी रोता है तू
न जाने किस घड़ी संभालता है तू ?
मेरी परेशानियां , जलता है तू
ओ नन्हें मेरे ! तू कम नहीं
मुझे सहने का ,
तुझ में दम कहीं
कहेगी "माँ" ना अब कभी -----'देकर तुझे जीवन , एहसानों की की है बरसात '
मैनें जन्मा तुझे ये कम ही है ,
तूने "माँ" बनने की दी है सौगात !"
कोई भी रचना उसके कथ्य एवं सुगढ़ भाषा-शैली एवं पुख्ता फार्मेट के कारण अपनी पठनीयता बनाती है। आपकी रचना में कथ्य सुंदर है, काफी संवेदनशीलतापूर्वक आपने अपने मानस को अभिव्यक्त किया है मगर, कविता के फार्मेट में कमज़ोरी दिखाई देती है। लगता है आपने कविताएँ ज़्यादा नहीं पढ़ी हैं। मगर आपकी संवेदनशीलता मुझे आश्वस्त करती है। आप कल्पनाशीलता की धनी है भाषा-शैली एवं कविता के फार्मेट में पारंगतता बढाने से आपकी कविताएँ और निखरकर सामने आएँगी।
ReplyDeleteआशा है मेरी टिप्पणी को अन्यथा नहीं लेंगी और अपने रचनाकर्म को और आयाम देंगी।
आपका बालक बेहद सुंदर है। उसने मुझे अपने बालक के बचपने की याद दिला दी। अब तो वह 16-17 साल का घोड़ा हो गया है मगर बचपन में वह हुबहू ऐसा ही दिखता था।
शुभकामनाओं के साथ।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
हंसतीं हूँ मैं हंसता है तू , बूँदें गिरी रोता है तू
ReplyDeleteन जाने किस घड़ी संभालता है तू ?
मेरी परेशानियां , जलता है तू
ओ नन्हें मेरे ! तू कम नहीं
ruchi ji,
sab kuchh to aapne likh diya ab main kya likhonn ? sach to ye hain ki jaake pair na fate bivaaie so kya jaane peer paraaie ? fir bhi ahsaas wahee hai jo doosron ke dard ka ahsaas kar sake . kyonki apne dard ko to jaanwar bhi mahsoos kar saktaa hai aur karta hai. kuchh inhee bhavon ka mujhe bhi kabhi ahsaas hua tha aur maine apni beti ke janm ke samay aspataal main hi ek kavita likhi thi aur wo maine apne blog pe post ki hai. baap beti ke beech baatcheet hai. lekin hairaani ki baat ye hai us par bhi kisi ne koi comment nahi kiya aur aapki itni khoobsoorat kavita per bhi koi comment nahi dikhaa mujhe. lekin is se hame vichlit nahi hona chahiye.
achchha likhaa hai prabhu aapke ahsaas ko yoon hi banaaye rakhe .
badhaai !!!
माँ बनने के इस अनुभव में भाव बहुत जीवंत।
ReplyDeleteअनुपम सुख माँ को मिले शिशु को स्नेह अनंत।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
Dear Frnd
ReplyDeleteFantastic likha hai. Tumne to apni sari ki sari feeling is poem main feel kar di hai. or Aapka Ananya bahut cute hai.
Take Care
Arfeen
bahut accha likha haai !!
ReplyDeleteSangeeta
मेरी दोस्त "रूचि जी" के ब्लॉग की इस रचना को पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा। सच में, किसी भी रिश्ते में अहसास बहुत मायने रखता है...रूचि जी आपने बहुत अच्छा लिखा है...मेरी तरफ से असीम शुभकामनाएं...........@
ReplyDeleteसादर,
राजेंद्र राठौर
ब्यूरो चीफ "पत्रिका"
जांजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)
really nice!!!!!
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