"ओ मूर्ख ! निकले शब्द पे, कभी गौर भी तूने किया,
फरिश्ता -ए-वफा कहते उन्हें , जिन्हें गाली में तूने कहा
अब तेरे लिए जो कह रही , उनपे ज़रा तू गौर कर
तेरी समझ गाली थी जो , उस रूप में आ जाते हीं
वो दर खुला मिलता तुझे , हर दिल में समा जाते वहीं
सोचा तेरा क्या रूप था , वो शब्द भी ना तुझको मिला
ख़ुद को कहेगा क्या बता , उस दर पे जा मस्तक झुका !


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