Wednesday, 23 September 2009

"मेरे प्यारे पापा" - ज़िन्दगी जीने वाले शायद स्वार्थी होते हैं ! ........(२९ जून, २००१)



"दो पल न रु-ब-रु हों , बेचैन रहते थे



आज साया भी नहीं , फिर भी हम जी रहे



मतलबी दुनियाँ, इसको हीं कहते हैं



पल-पल में थे शरीक, अब तन्हाई में रहते हैं



संगदिल ऐसे, कि जहां की निगाहों से



आंसू भी पशेमां अब, छुपकर हीं बहते हैं !"

1 comment: