Tuesday, 29 June 2010

इक ऐसी माँ जो सिर्फ अपने बच्चे को अव्वल बताती है चाहे ग़ैर बच्चे उनके बच्चों से कितने भी बेहतर हों ............(२९ जून,२०१०)

ये किस्सा कुछ ख़ास नहीं मगर इसे गौर कीजिये तो कई माँ के आँखों में आंसू उतर आतें हैं !मगर उन्हें इंतज़ार उन पलों का है, जब उनके बच्चों को चाँद की रौशनी मिलेगी और  सामने का जलता दीया खुद-ब-खुद अँधेरा-सा नज़र आएगा ! हाँ, वक़्त थोडा इंतज़ार कराता है , इसमें कोई शक नहीं !


   'अपने  आँचल का दीया , सितारा है लग रहा 

   मुक़ाबिल  चाँद भी खड़ा , आवारा हीं लग रहा '

Thursday, 3 June 2010

क़िस्मत का पलटता रुख़........(०३ जून, २०१०)

क़िस्मत पे कभी घमंड मत करना , ये कब पलट जाए मालूम नहीं !आज जो तुम्हारे इर्द-गिर्द हुक्म की तामीली में लगा है शायद उससे हीं मिलने को कल तुम्हें कतारों में खड़ा होना पड़े !

    "जो  तामिले  हुक्म में  मेरे , दिन- रात  बैठे थे          उनसे हीं  मुलाक़ात  की,  क़तार में खड़ी हूँ !"