शुक्रिया, शुक्रिया , बहुत बहुत शुक्रिया ......... " वेलेंटाइन डे " ! तुम नहीं होते, ये बुढापा तरसता , साल का एक दिन भी मुहब्बत ना बरसता और ज़वानी हमसे इक दिन सही यूँ नहीं जलता !
मुक़र्रर ना होता दिन, हम प्यासे हीं मर जाते
मुहब्बत को दिल करता , वजह क्या बताते ?
हर वक़्त हम पे हँसती ज़वानी को, कैसे ये सुनाते..........
"कहने को हूँ बूढ़ा , बस भूला आवाज़ हूँ
उमर की लाज आँखों में, नहीं भूला मैं साज हूँ
इश्क मेरा नहीं है कम , सुनो मैं माहताब हूँ
ठंडी मुहब्बत कितनी गहरी, तुम्हें दिखाने को आज हूँ !"

