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ज़रा गौर से सोचिये , शायद मेरा कहा सच नज़र आये। आप मर्दों की निगाहें ऐसी ना होती तो ना हीं ये ज़िस्म्फरोसी जैसी कोई बात होती और ना हीं मज़बूर या मतलबी औरतों को ऐसा कोई सहारा मिलता
"तन्हा जो सोचोगे, आवाज़ आएगी
तुम नहीं होते , ये आलम नहीं होता ........"
.....ग़ुरबत नहीं ऐसे , अंजुमन में लाती
तुम ना होते शायद , खुद को मैं आज़माती
थोड़ी खुशियाँ हीं सही, ये गम नहीं होता
तुम नहीं होते , ये आलम नहीं होता ........!
.....तुरबत है ये मेरी, महफ़िल नहीं कोई
टूटे साँस जिस पल, तौकीर थी खोयी
सौदाई ना कहलाती, जो नशेमन मेरा होता
तुम नहीं होते, ये आलम नहीं होता ..........!
.......मौत हीं बेहतर, अब ज़िन्दगी से लग रही है
ज़िन्दगी मेरी मुझे, कातिल सी लग रही है
किस्मत का सितम यूँ , बेरहम नहीं होता
तुम नहीं होते , ये आलम नहीं होता ..........!
तन्हा जो सोचोगे , आवाज़ आएगी
तुम नहीं होते , ये आलम नहीं होता ..........!!!
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