मैं लिखावट में अक्सर दर्द को ज्यादा महत्व देती हूँ , इसलिए मेरे
प्रिय गीतकार "गुलज़ार" जी हैं। उन्हें हीं मैंने अपनी लिखावट में
अपना आदर्श माना है। आज उनके जन्मदिन के अवसर पे उनको मेरी
ओर से ढेरों बधाई ! उन्हें ईश्वर सदियों तक इस धरती पे शाश्वत रूप में
रखें। मेरे दो लब्ज़ों की उन्हें ये छोटी सी सौगात ...............
"तेरे लब्ज़ कानों में पड़े , आँखों में हुई बरसात
फिर भी पलक मूंदी नहीं , जागते हीं कटी रात ।
आँखों से पूछा , क्यूँ तू सारी रात ना सोया ?
चुपके कहा , गुलज़ार का तोहफा रहा था पिरोया ।
तोहफ़े में कुछ कहा था यूँ ------------
'जब तक रहे ये ग़ुल, गुलज़ार तू रहे ।
सदियाँ आँकें तेरी उम्र ,ये साल बस बहें !'
ये सुन आखों में फिर से आँसू छलक आये । और दिल ने कहा -'काश , ये सच होता ' !


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