Wednesday, 23 September 2009

मेरी प्यारी "खुशी" - इंसानों से ज्यादा जीवों में समर्पण-भाव..........(२१ जनवरी, २००६)




"ना खून का रिश्ता है , ना दोस्ती भरे हालात


ना इंसा की सोच उसमे , ना खौफ ना सौगात


थोड़ी सिकन हमारी , बेचैन वो होती है


तोहफा जो हमारा , खुशियों में वो खोती है


कैसा ये नज़ारा है , कैसा ये इशारा ?


कैसें हैं ये ज़ज्बात , जो खुदा ने है संवारा ?


इकतरफा ये कैसा प्यार , जो कम नहीं होता ?


कुछ मिले ना मिले , उसे गम नहीं होता


दो रोटियों की महरबानी , हमने है उसपे की


उसने तो कतरा-कतरा , हमपे है लुटा दी !"

' पति के अहम तले इक पत्नी का समर्पण ' -आज के बदलते परिवेश को शायद नामंजूर ........(२९ सितम्बर, २००६)



"तेरी अहम ना टूटे , मैं घुटनों के बल चली


  ज़िन्दगी मेरी , तेरी खुशियों में ही पली


  इक बार हँसते-हँसते , थोड़ा सच जो कह दिया


  पल भर ना तुम रुके , हमें सूली पे जड़ दिया



  साँसें तेरी चढ़ आई , इक बार झुकने में


  सोचा बीती कैसे ये उम्र , मेरी घुटने पे ?"

"मेरे प्यारे पापा" -आज हीं ईश्वर ने आपको हमसे छीना था और वादा है आज से आपको आंसुओं नहीं बस खुशिओं में समेटूंगी !.........(१४ अप्रैल, २००७)



"आंखों में पानी अब, कम हीं आयेगा


 तुझे खोने का गम अब कम हीं , आंसू बहायेगा


 तेरे एहसास को अबसे , खुशियों में समेटूंगी


 तू तबस्सुम बना खुशियों को फिर , महकम बनायेगा!"











"मेरे प्यारे पापा"- आपकी जगह हमेशा इस ज़िन्दगी में खाली रहेगी.........(३ दिसम्बर, २००३)

"चाहकर भी आपसा हक़ , ना दे सकी ना ले सकी

जब भी ये करना चाहा , इक लकीर आ गई !"

"मेरे प्यारे पापा"-आपके जन्मदिन पर ख़ुदा के दरगाह में आपको मेरी इक बधाई.........(३ दिसम्बर, २००३)



"मुबारक हो जन्मदिन ! ख़ुदा के दरगाह में




इबादत हूँ कर रही , दराज़ उम्र हो आपकी वहाँ




छिन गए हमसे , ये हमने सह लिया




किसी और के हो जाएँ , ये गम नहीं सह पायेंगे !"

"मेरे प्यारे पापा" - ज़िन्दगी जीने वाले शायद स्वार्थी होते हैं ! ........(२९ जून, २००१)



"दो पल न रु-ब-रु हों , बेचैन रहते थे



आज साया भी नहीं , फिर भी हम जी रहे



मतलबी दुनियाँ, इसको हीं कहते हैं



पल-पल में थे शरीक, अब तन्हाई में रहते हैं



संगदिल ऐसे, कि जहां की निगाहों से



आंसू भी पशेमां अब, छुपकर हीं बहते हैं !"

"मेरे प्यारे पापा" -आप हमेशा हमारी हिम्मत रहें हैं और रहेंगे !........(९ जुलाई, १९९९)



"न जलती चिता देखी, न चिर निद्रा में है देखा


मैनें तो आपको, हिम्मत का मसीहा बने देखा


चलूंगी आपने हर हाल में, चलना सिखाया है


कोई रोके नहीं रुकना मुझे, जो आपका साया है !"

Tuesday, 22 September 2009

"वफाई के तख्त पे बैठो तो जानें, सचमुच में हो तुम मर्द ये हर शख्स पहचाने" -हमसफ़र से बेवफाई, ख़ुदा को भी नामंजूर ......(८ जून,२००१)



"गर मर्द हो निगाहों पे फिसलना कभी नहीं,


शबाब की समां में पिघलना कभी नहीं,



हुस्न के शोलों में जलना कभी नहीं,



आंखों के सुकून पे मचलना कभी नहीं,



दो पल की जवानी है ये ढल हीं जायेगी,



शामिल हुए तो क्या ये छोड़ जायेगी,



लौटोगे खाली हाथ फिर उस महबूबा के पास,



जो आज भी दिल से करती है तुझे प्यार,



तेरी निगाहों में ग़ैरत का असर होगा,



उसकी निगाहों में चाहत का बसर होगा,



कैसे हो तुम मर्द जो हर हाल में हारे हो,



हर पग पे बदले हीं सही औरत के सहारे हो



कहतीं हूँ अब भी मर्द का हिलना सिफ़त नहीं,



ग़ैरों के दम पे दुनिया में चलना कभी नहीं,



बनाया है जिसे हमसफर चलने को साथ में,


निभाना उसी का साथ तुम जीवन की राह में,



छोड़ उसे ग़ैर के संग जो चलोगे,



ख़ुदा से डरो उसकी नज़र में मुजरिम बनोगे,



कहते हो ख़ुद को मर्द तो इक राह पे चलो,



फ़र्ज़ की खातिर हर ख्वाहिश कलम करो,



वफाई के तख़्त पे बैठो तो जानें,



'सचमुच में हो तुम मर्द' - ये हर शख्स पहचाने !"

Friday, 11 September 2009

'फक्र करो अहम नहीं' -अहम से परेशां औरतों को मेरे लब्जों की इक ठंढी छुअन शायद कामयाब हो वरना खुदा की मर्जी.......(१७ जून, २००१)



"ऐ नाजनीन हुस्न पे , गुरूर मत करना



अदाओं के बर्क पे , बेखौफ मत चलना



तौफ़ीक तुझमें है , तक्कवूर नहीं करना



दौलत की बुलंदी पे, कभी नाज ना करना



जो खुशियाँ हैं मुकद्दर में , ये ना हों भी वो होंगीं


मग़र ग़म में पनाह लिखी , ये सब हों भी कम होंगी !"